हादसों से बच निकल कर चोट खाना ज़िन्दगीदूसरे की पीर में हिस्सा बँटाना ज़िन्दगीगम भुला कर गुनगुनाना बस यही है ज़िंदगीदर्द का पी कर हलाहल मुस्कुराना ज़िंदगी
– आयुषि राखेचा
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